शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

कविता उनसे कह देना

कॉलेज के पहले दिन से ,नजरो में वो आई थी,
ना जाने इन कुडिओं में ,क्यों वो ही मुझको भायी थी.
छिप- छिप कर देखा करता, इन नजरो  की कोरो से ,
दिल उन्हें छिपा लिया ,धड़कन  के   द्वारो    से.
यह दिल उनका ही आशियाना है, ऐ कविता उनसे कह देना..

इस लुका छिपी के खेल में धीरे- धीरे मेल हुआ,
अपना उसे समझ बैठा ,ना ख़त लिखा ,ना ई-मेल हुआ.
प्यार वो मुझसे करती है ,नहीं उसे दर्शाती है,
सच पूछो वो ज़िद्दी, है इसलिए मुझे सताती है ,
सपनो में आती हो तुम, ऐ कविता उनसे कह देना.

शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

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अब तक मैंने गीत विरह के गाये थे,
अब मै राग प्रेम का छेडूंगा,
अब तक मैंने भवरो के संग गुंजार करूँगा,
अब मै अलियों -कलियों के संग खेलूँगा.

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बुधवार, 17 नवंबर 2010

प्रेम पेटिका

              
                            (पहली)



लाल रोशनी , धीमी -आहट  ,रातो का भी क्या कहना,
रात वो आधी , बात आधूरी ,वादों का भी क्या कहना.

धनुषाकृत भौ, लम्बे केश , ग्रीवा का भी क्या कहना ,
आखों में सुरमा , माथे पर बिंदिया , होठो का भी क्या कहना .

चाँद सा टुकड़ा , भोला मुखड़ा , मुखड़े का भी क्या कहना,
उनकी अदाए , उनके इसारे ,धड़कन का भी क्या कहना.







मंगलवार, 16 नवंबर 2010

जाड़े के दिन एक राज्यिया ....

जाड़े के दिन आवन बयये,
हमने सोची एक बतयिया,
चलो ख़रीदे एक राज्यिया  .

ठाट -बाट से गएँ बजरिया,
सोनुवा के संग गयन बजरिया,
और खरीदी एक राज्यिया  .

वहिका संग हम लायें भइय्या ,
बड़े मजे ते सोयन भईय्या,
ई है हमरी एक राज्यिया   .


इहते प्यार बहुत है हमका ,
रिश्ते मा  ना लगे सैया,
हमरी प्यारी एक राज्यिया   .

बहार से तो ठंडी बहुते,
अंदर गरम बहुत रजिय्या,
हमरी  न्यारी एक राज्यिया  .

प्यार -मेल के मस्त खेल मा.
आठ बजे तक सोयें भईय्या,
ऐसी हमरी एक  राज्यिया  .

देर हो गयी कॉलेज  कहिय्या ,
डाट पड़ी फिर हमका भईय्या,
ऐसी हमरी एक राज्यिया  .

पाहिले थोडा गुस्सा भायें
फिर घुसि गएँ वही राज्यिया  ,
जाड़े के दिन एक राज्यिया  .

सोमवार, 15 नवंबर 2010

जब मेरे घर नानी आई .......

जब मेरे घर नानी आई,
थी  थाली भर खोया लाई,
तब हम सबने चीख लगाई,
मम्मी अब तो बने मिठाई .

मम्मी ने पहले ना माना,
पर चल सका ना एक बहाना,
मम्मी अब थी गयी रसोई ,
और बनाने लगी मिठाई .

डब्बू,पिंटू ,बब्लू आये ,
डाली ,कमला ,बबली आयी,
रसगुल्ला , छेना और बर्फी ,
मीठी - गुझिया- रसमलाई.

अब हम सब है मौज मानते,
नाच -नाचते गाना -गाते ,
मम्मी ने आवाज लगाई,
बच्चों है बन गयी मिठाई .

नटखट दीप का रोना जरी,
मुझे मिठाई  खनी सारी,
मम्मी ने उसे पास बुलाया ,
फिर धीरे से था समझाया.

जो होते है अच्छे बच्चे ,
जो होते मन के सच्चे ,
खाते है मिल -बाट मिठाई ,
जब मेरे घर नानी आयी.



                                                                  

रविवार, 14 नवंबर 2010

प्रिये मगर ना अश्रु बहाना !

                                            एक प्रशं मै तुमसे पूंछू ,
                                        प्रिये मगर ना अश्रु बहाना ,

आना -जाना क्रम दुनिया का ,
एक दिन जाना है सबको,
मरना है जब सबको एक दिन,
आज मरे क्यों रक्खे कल को.

                                                                             अभी मेरी जब चिता जलेगी ,
                                                                             लपटों औ ज्वालानल से,
                                                                             मचेगा शमशान घाट पर -हाहाकार ,
                                                                             विरह  और  रौद्र  की ध्वनि से.

                                    उन लपटों से दूर ही रहना,
                                    अरे दूर तुम पास ना आना,
                                    एक प्रशं मै तुमसे पूंछू ,
                                    प्रिये मगर ना अश्रु बहाना ,

                                                                            कहती हो की अभी तुम्हे ,
                                                                            बिन देख नहीं जी पाती हूँ,
                                                                            जिस रात ना आओ ख्वाबो में, 
                                                                             उस रात नहीं सो पाती हूँ.

सीधी सी है बात वो मेरे साथी ,
कुछ ही दिन मेरे जाने के हो जायेंगे,
ख्वाबो का महल ढहेगा ,
सच याद तुम्हे ना आयेगे .
                      
                                     मेरे होठो पर मत रक्खो ऊँगली ,
                                     अभी मुझे कुछ और बताना , 
                                     एक प्रशं मै तुमसे पूंछू ,
                                     प्रिये मगर ना अश्रु बहाना ,


जग में कितने ही आये थे,
आकर के कितने जायेंगे ,
कहने वाले सच कहते है ,
जो आये है वो जांएगे.

                                                                        तुम्ही नहीं केवल साथी ,
                                                                        हर कोई मुझे भुला देगा,
                                                                        यह जगह जहाँ हम बैठे है ,
                                                                         कल क्या मुझको याद करेगा.

                                      होस में हूँ  मै नहीं नशे में ,
                                      नहीं चाहता तुम्हे रुलाना ,
                                     एक प्रशं मै तुमसे पूंछू ,
                                     प्रिये मगर ना अश्रु बहाना ,

यमराज अभी जब आयेंगे ,
हम छोड़ तुम्हे तुब जायेंगे,
उन भूत प्रेत कंकालो में ,
कुछ लोग वहां  मिल जायेंगे .

                                                                                            अब मेरे जाने की बारी है ,
                                                                                            अब नहीं रोकना ,
                                                                                            जब जाने वाले जाते है, 
                                                                                            तब नहीं चाहिए उन्हें टोकना,

                                       यह व्याकुलता  ना मुख पर लावों,
                                       हँस कर मुझे विदा दिलाना,
                                       एक प्रशं मै तुमसे पूंछू ,
                                      प्रिये मगर ना अश्रु बहाना ,







जिगर का टुकड़ा

कुछ यू ही तो तकरार हुई ,
अपनों की फटकार लगी ,
बात बान मै सह ना सका ,
जी यू ही घर से निकल पड़ा .

मै यंहा कंही भी नहीं रुका ,
मै दूर राज्य में पंहुच गया,
इस पेट के कारण मैंने भी ,
इस  पेट का कारण खोज लिया.

मैंने देखा एक बालक -वह रोता था,
वह माँ कहकर के रोता  था ,
टोली में उसका पता किया ,
फिर उस बालक कि व्यथा सुना.

तन जिसका पूरा नंगा था,पेट -पीठ  में भेद नहीं ,
कंकाल मात्र ही दिखता था,
वह रोता था ,चिल्लाता था,
लोगो कि जूठन खता था,

वह बेचारा क्या करता,
जब जग मालिक ही रूढ़ गया,
बाप का साया छीन लिया ,
माँ की ममता को हठप लिया,

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वही एक टोली में माँ थी ,
निज बच्चे को दुलराती थी ,

उस माँ की ममता को लखकर ,
आनंदविभोरित हो उठता ,
इस भावुक कवि के मन में भी,
ममता का भाव उमड़ उठता .

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उस बालक को पुचकारा ,
फिर  मैंने  उसको समझया ,
निस -दिन का क्रम बन जायेगा,
तू रोते -रोते  सो जायेगा,

तेरे जीवन का वह सावन ,
अब नहीं लौट कर आयेगा,
वह कभी नहीं माँ आयेगी,
वह बाप लौट ना पायेगा.

अब कडवे -तीखे  शब्द सभी ,
बस मधुर समझ कर सुनने  है,
दर- दर की ठोकर को तुमको,
बस मंजिल समझ कर चठने है,

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जग में है वो सौभाग्यशाली ,
माँ -बाप का जिनको प्यार मिला,
उनके समान नहीं कोई ज्ञानी ,
माँ-बाप को जिसने प्यार दिया .

मै भी कितना अँधा हूँ जी,
माँ-बाप को  ही मै छोड़  चला ,
अजी, व्यर्थ स्वाभिमान के कारण ,
मै अपनों से ही रूठ चला .

चल लौट -लौट अपने घर को,
वंहा माँ तेरी रोटी होगी,
इस जिगर के टुकड़े के खातिर,
ना - रात,  ना -दिन,सोती होगी .

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शनिवार, 13 नवंबर 2010

हाँ तुम !

तुम्हारे नील -झील से नैन ,
और लहराते काले बाल,
तुम्हारी मन-मोहक मुस्कान ,
हमारी आँखों का व्यवहार .

तुम्हारे नयन -नक्श विशाल ,
तिस पर अरे ओढ़नी  लाल,
 हवा से उड़े ओढ़नी लाल,
हवा का बन जाऊ , मै काल.

तुम्हारे नील -झील से नैन ,
और लहराते काले बाल.

पंडित जी कि हुई पिटाई

पंडित जी हाँ चोटी वाले,
लम्बा कुर्ता, धोती वाले,
पंडित जी चमड़ी के गोरे,
बुद्धि में थे कागज कोरे .

पंडित जी के सर पर चुटिया,
संग अपने रखते थे लुटिया,
पंडित जी संग मेरे रहते,
गर्ल- वर्ल की बाते करते.

पंडित जी ने व्यथा बताई,
एक कन्या की कथा सुनाई,
पंडित जी ने दाव लगाया,
उस कन्या को मुक्षे दिखाया.

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कन्या मालिक की बेटी थी,
पहले माले पर रहती थी ,
पंडित जी ने प्रीत जताई,
कन्या मंद- मंद मुस्काई.

कन्या सीढ़ी से जब आई,
पंडित जी ने बात बनाई ,
कन्या सच  में वंडर थी,
क्यूट और अतिसुंदर थी.

कन्या कॉलेज में पढ़ती थी,
बाते इंग्लिश में करती थी,
कन्या के संग एक फ्रंडा  था,
सकल से दिखता गैंडा था.

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(पंडित जी  प्यार में गिर चुके थे. उन्हें सहारे कि जरुरत थी .
मैंने कंहा पंडित जी आप स्मार्ट है . धोती कुर्ता और चुटिया
 में खूब  फबते है, आप के अंदर भारतीयता है , नातिकता है,
 पर आधुनिकता नहीं है.आप को आधुनिक बनना होगा.  )

पंडित जी ने चोटी बदली ,
कुर्ता और लगोंटी बदली ,
पंडित जी अब जींस- पैंट में,
चलते जैसे चले रैम्प में.

पंडित जी ने ऐनक पहनी,
अब दिल कि बाते है कहनी,
पंडित जी ने पुष्प मंगाया,
लव- लैटर  मुझ से लिखवाया.

पंडित जी थे बड़े पुजारी,
जप राधा -स्वामी कृष्ण -मुरारी,
पंडित जी अब सुबह -सवेरे ,
नए प्यार में हाथ पसारे.

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(अब पंडित जी ,अपनी दिल की बात उस कन्या से कहते है.)

कन्या कटी मटकती आई,
पंडित जी क्या हुई सगाई ,
पंडित जी के होस उड़ गए,
कन्या के जो कदम बढ़ गए.

पंडित जी कहने को ठानी,
कन्या तेरी मस्त जवानी,
कन्या तेरा हूँ  दीवाना ,
आ मेरी बाहों में आना .

कन्या ने तब चीख लगाई ,
पंडित जी की हुई पिटाई.

गुरुवार, 3 जून 2010

मधुशाला

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 मदिरालय  के  दरवाजे पर खड़ी    हुई  - साकी बाला,
अपने मादक   नैनों  से पिला रही- मादक हाला.
भरी हुई मधु कि बोतल, औ  भरा हुवा मधु का प्याला,
मुक्षको प्रेमी बना रही थी , मधुरम - मधुरुस -मधुशाला.

प्याले  का  आलिंगन  कर ,    अधरों को  चूमे  मधुशाला ,
हर दिन - हर पल डोलू हर पल, लिए हुए मधु का प्याला .
तन्द्रा   - निंद्रा रात्रि और दिन,  सपनो में भी मधुशाला,
मै तो उसका बन बैठा  था,  प्रेमी- पागल- मतवाला .

अपने पुरखो की समाधी पर, बनवाई एक मधुशाला  , 
नाते- रिश्ते बंधन भूला , याद रहा मधु  का प्याला.
मेरे जीवन में बस  था , मदिरालय- मधुरस- प्याला .

साकी ने है मुझे  छला  -   मै ठगा गया मधु के द्वारा , 
घुट  - घुट  कर मै रोता  हूँ,  फूट  रही  अंतरज्वाला.
बर्बादी  को   देख  मेरी है ,  चिढ़ा रही मुझको हाला ,
मेरी लघुता पर हँस हँस कर,  झूम रही है मधुशाला.


तू बड़ी संगिनी है बाला , तू बड़ी रंगिनी है  बाला ,
अनजान प्रेम था कर बैठा , बन गयी कंठ कि है माला .
तू लोक -लाज किसका करती , अरि बेहया-बेशर्म  मधुशाला ,
छू लेती  जब अधरों  को ,है मर जाता पिने वाला .


 जब मदिरालय खाली होगी , उस समय कंहा तू जाएगी ,
प्याले बोतल में पड़ी -पड़ी , अपनी करनी पर रोएगी .
मै मदिरालय से दूर चला ,री भस्म हो जा मधुशाला,
मानव बनने के लिए चला , ठुकराता हूँ तेरा प्याला .  











 




माँ के नाम

जिसकी सुकोमल कोख से यह जन्म पाने के लिए ,
पीकर पायो निधि धार जिसकी यह रूप पाने के लिए ।
हे, ममतामयी -म्रदुभाषणी-मातेंशवरी तुझको नमन ॥