कॉलेज के पहले दिन से ,नजरो में वो आई थी,
ना जाने इन कुडिओं में ,क्यों वो ही मुझको भायी थी.
छिप- छिप कर देखा करता, इन नजरो की कोरो से ,
दिल उन्हें छिपा लिया ,धड़कन के द्वारो से.
यह दिल उनका ही आशियाना है, ऐ कविता उनसे कह देना..
इस लुका छिपी के खेल में धीरे- धीरे मेल हुआ,
अपना उसे समझ बैठा ,ना ख़त लिखा ,ना ई-मेल हुआ.
प्यार वो मुझसे करती है ,नहीं उसे दर्शाती है,
सच पूछो वो ज़िद्दी, है इसलिए मुझे सताती है ,
सपनो में आती हो तुम, ऐ कविता उनसे कह देना.
शुक्रवार, 26 नवंबर 2010
शुक्रवार, 19 नवंबर 2010
**************************************
अब तक मैंने गीत विरह के गाये थे,
अब मै राग प्रेम का छेडूंगा,
अब तक मैंने भवरो के संग गुंजार करूँगा,
अब मै अलियों -कलियों के संग खेलूँगा.
*********************************************
अब मै राग प्रेम का छेडूंगा,
अब तक मैंने भवरो के संग गुंजार करूँगा,
अब मै अलियों -कलियों के संग खेलूँगा.
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बुधवार, 17 नवंबर 2010
प्रेम पेटिका
(पहली)
लाल रोशनी , धीमी -आहट ,रातो का भी क्या कहना,
रात वो आधी , बात आधूरी ,वादों का भी क्या कहना.
धनुषाकृत भौ, लम्बे केश , ग्रीवा का भी क्या कहना ,
आखों में सुरमा , माथे पर बिंदिया , होठो का भी क्या कहना .
चाँद सा टुकड़ा , भोला मुखड़ा , मुखड़े का भी क्या कहना,
उनकी अदाए , उनके इसारे ,धड़कन का भी क्या कहना.
मंगलवार, 16 नवंबर 2010
जाड़े के दिन एक राज्यिया ....
जाड़े के दिन आवन बयये,
हमने सोची एक बतयिया,
चलो ख़रीदे एक राज्यिया .
ठाट -बाट से गएँ बजरिया,
सोनुवा के संग गयन बजरिया,
और खरीदी एक राज्यिया .
वहिका संग हम लायें भइय्या ,
बड़े मजे ते सोयन भईय्या,
ई है हमरी एक राज्यिया .
इहते प्यार बहुत है हमका ,
रिश्ते मा ना लगे सैया,
हमरी प्यारी एक राज्यिया .
बहार से तो ठंडी बहुते,
अंदर गरम बहुत रजिय्या,
हमरी न्यारी एक राज्यिया .
प्यार -मेल के मस्त खेल मा.
आठ बजे तक सोयें भईय्या,
ऐसी हमरी एक राज्यिया .
देर हो गयी कॉलेज कहिय्या ,
डाट पड़ी फिर हमका भईय्या,
ऐसी हमरी एक राज्यिया .
पाहिले थोडा गुस्सा भायें
फिर घुसि गएँ वही राज्यिया ,
जाड़े के दिन एक राज्यिया .
हमने सोची एक बतयिया,
चलो ख़रीदे एक राज्यिया .
ठाट -बाट से गएँ बजरिया,
सोनुवा के संग गयन बजरिया,
और खरीदी एक राज्यिया .
वहिका संग हम लायें भइय्या ,
बड़े मजे ते सोयन भईय्या,
ई है हमरी एक राज्यिया .
इहते प्यार बहुत है हमका ,
रिश्ते मा ना लगे सैया,
हमरी प्यारी एक राज्यिया .
बहार से तो ठंडी बहुते,
अंदर गरम बहुत रजिय्या,
हमरी न्यारी एक राज्यिया .
प्यार -मेल के मस्त खेल मा.
आठ बजे तक सोयें भईय्या,
ऐसी हमरी एक राज्यिया .
देर हो गयी कॉलेज कहिय्या ,
डाट पड़ी फिर हमका भईय्या,
ऐसी हमरी एक राज्यिया .
पाहिले थोडा गुस्सा भायें
फिर घुसि गएँ वही राज्यिया ,
जाड़े के दिन एक राज्यिया .
सोमवार, 15 नवंबर 2010
जब मेरे घर नानी आई .......
जब मेरे घर नानी आई,
थी थाली भर खोया लाई,
तब हम सबने चीख लगाई,
मम्मी अब तो बने मिठाई .
मम्मी ने पहले ना माना,
पर चल सका ना एक बहाना,
मम्मी अब थी गयी रसोई ,
और बनाने लगी मिठाई .
डब्बू,पिंटू ,बब्लू आये ,
डाली ,कमला ,बबली आयी,
रसगुल्ला , छेना और बर्फी ,
मीठी - गुझिया- रसमलाई.
अब हम सब है मौज मानते,
नाच -नाचते गाना -गाते ,
मम्मी ने आवाज लगाई,
बच्चों है बन गयी मिठाई .
नटखट दीप का रोना जरी,
मुझे मिठाई खनी सारी,
मम्मी ने उसे पास बुलाया ,
फिर धीरे से था समझाया.
जो होते है अच्छे बच्चे ,
जो होते मन के सच्चे ,
खाते है मिल -बाट मिठाई ,
जब मेरे घर नानी आयी.
थी थाली भर खोया लाई,
तब हम सबने चीख लगाई,
मम्मी अब तो बने मिठाई .
मम्मी ने पहले ना माना,
पर चल सका ना एक बहाना,
मम्मी अब थी गयी रसोई ,
और बनाने लगी मिठाई .
डब्बू,पिंटू ,बब्लू आये ,
डाली ,कमला ,बबली आयी,
रसगुल्ला , छेना और बर्फी ,
मीठी - गुझिया- रसमलाई.
अब हम सब है मौज मानते,
नाच -नाचते गाना -गाते ,
मम्मी ने आवाज लगाई,
बच्चों है बन गयी मिठाई .
नटखट दीप का रोना जरी,
मुझे मिठाई खनी सारी,
मम्मी ने उसे पास बुलाया ,
फिर धीरे से था समझाया.
जो होते है अच्छे बच्चे ,
जो होते मन के सच्चे ,
खाते है मिल -बाट मिठाई ,
जब मेरे घर नानी आयी.
रविवार, 14 नवंबर 2010
प्रिये मगर ना अश्रु बहाना !
एक प्रशं मै तुमसे पूंछू ,
प्रिये मगर ना अश्रु बहाना ,
आना -जाना क्रम दुनिया का ,
एक दिन जाना है सबको,
मरना है जब सबको एक दिन,
आज मरे क्यों रक्खे कल को.
अभी मेरी जब चिता जलेगी ,
लपटों औ ज्वालानल से,
मचेगा शमशान घाट पर -हाहाकार ,
विरह और रौद्र की ध्वनि से.
उन लपटों से दूर ही रहना,
अरे दूर तुम पास ना आना,
एक प्रशं मै तुमसे पूंछू ,
प्रिये मगर ना अश्रु बहाना ,
आना -जाना क्रम दुनिया का ,
एक दिन जाना है सबको,
मरना है जब सबको एक दिन,
आज मरे क्यों रक्खे कल को.
अभी मेरी जब चिता जलेगी ,
लपटों औ ज्वालानल से,
मचेगा शमशान घाट पर -हाहाकार ,
विरह और रौद्र की ध्वनि से.
उन लपटों से दूर ही रहना,
अरे दूर तुम पास ना आना,
एक प्रशं मै तुमसे पूंछू ,
प्रिये मगर ना अश्रु बहाना ,
कहती हो की अभी तुम्हे ,
बिन देख नहीं जी पाती हूँ,
जिस रात ना आओ ख्वाबो में,
उस रात नहीं सो पाती हूँ.
सीधी सी है बात वो मेरे साथी ,
कुछ ही दिन मेरे जाने के हो जायेंगे,
ख्वाबो का महल ढहेगा ,
सच याद तुम्हे ना आयेगे .
मेरे होठो पर मत रक्खो ऊँगली ,
अभी मुझे कुछ और बताना ,
एक प्रशं मै तुमसे पूंछू ,
प्रिये मगर ना अश्रु बहाना ,
जग में कितने ही आये थे,
आकर के कितने जायेंगे ,
कहने वाले सच कहते है ,
जो आये है वो जांएगे.
तुम्ही नहीं केवल साथी ,
हर कोई मुझे भुला देगा,
यह जगह जहाँ हम बैठे है ,
कल क्या मुझको याद करेगा.
होस में हूँ मै नहीं नशे में ,
नहीं चाहता तुम्हे रुलाना ,
एक प्रशं मै तुमसे पूंछू ,
प्रिये मगर ना अश्रु बहाना ,
यमराज अभी जब आयेंगे ,
हम छोड़ तुम्हे तुब जायेंगे,
उन भूत प्रेत कंकालो में ,
कुछ लोग वहां मिल जायेंगे .
अब मेरे जाने की बारी है ,
अब नहीं रोकना ,
जब जाने वाले जाते है,
तब नहीं चाहिए उन्हें टोकना,
यह व्याकुलता ना मुख पर लावों,
हँस कर मुझे विदा दिलाना,
एक प्रशं मै तुमसे पूंछू ,
प्रिये मगर ना अश्रु बहाना ,
जिगर का टुकड़ा
कुछ यू ही तो तकरार हुई ,
अपनों की फटकार लगी ,
बात बान मै सह ना सका ,
जी यू ही घर से निकल पड़ा .
मै यंहा कंही भी नहीं रुका ,
मै दूर राज्य में पंहुच गया,
इस पेट के कारण मैंने भी ,
इस पेट का कारण खोज लिया.
मैंने देखा एक बालक -वह रोता था,
वह माँ कहकर के रोता था ,
टोली में उसका पता किया ,
फिर उस बालक कि व्यथा सुना.
तन जिसका पूरा नंगा था,पेट -पीठ में भेद नहीं ,
कंकाल मात्र ही दिखता था,
वह रोता था ,चिल्लाता था,
लोगो कि जूठन खता था,
वह बेचारा क्या करता,
जब जग मालिक ही रूढ़ गया,
बाप का साया छीन लिया ,
माँ की ममता को हठप लिया,
**************************
वही एक टोली में माँ थी ,
निज बच्चे को दुलराती थी ,
उस माँ की ममता को लखकर ,
आनंदविभोरित हो उठता ,
इस भावुक कवि के मन में भी,
ममता का भाव उमड़ उठता .
*********************
उस बालक को पुचकारा ,
फिर मैंने उसको समझया ,
निस -दिन का क्रम बन जायेगा,
तू रोते -रोते सो जायेगा,
तेरे जीवन का वह सावन ,
अब नहीं लौट कर आयेगा,
वह कभी नहीं माँ आयेगी,
वह बाप लौट ना पायेगा.
अब कडवे -तीखे शब्द सभी ,
बस मधुर समझ कर सुनने है,
दर- दर की ठोकर को तुमको,
बस मंजिल समझ कर चठने है,
*****************************
जग में है वो सौभाग्यशाली ,
माँ -बाप का जिनको प्यार मिला,
उनके समान नहीं कोई ज्ञानी ,
माँ-बाप को जिसने प्यार दिया .
मै भी कितना अँधा हूँ जी,
माँ-बाप को ही मै छोड़ चला ,
अजी, व्यर्थ स्वाभिमान के कारण ,
मै अपनों से ही रूठ चला .
चल लौट -लौट अपने घर को,
वंहा माँ तेरी रोटी होगी,
इस जिगर के टुकड़े के खातिर,
ना - रात, ना -दिन,सोती होगी .
****************************
अपनों की फटकार लगी ,
बात बान मै सह ना सका ,
जी यू ही घर से निकल पड़ा .
मै यंहा कंही भी नहीं रुका ,
मै दूर राज्य में पंहुच गया,
इस पेट के कारण मैंने भी ,
इस पेट का कारण खोज लिया.
मैंने देखा एक बालक -वह रोता था,
वह माँ कहकर के रोता था ,
टोली में उसका पता किया ,
फिर उस बालक कि व्यथा सुना.
तन जिसका पूरा नंगा था,पेट -पीठ में भेद नहीं ,
कंकाल मात्र ही दिखता था,
वह रोता था ,चिल्लाता था,
लोगो कि जूठन खता था,
वह बेचारा क्या करता,
जब जग मालिक ही रूढ़ गया,
बाप का साया छीन लिया ,
माँ की ममता को हठप लिया,
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वही एक टोली में माँ थी ,
निज बच्चे को दुलराती थी ,
उस माँ की ममता को लखकर ,
आनंदविभोरित हो उठता ,
इस भावुक कवि के मन में भी,
ममता का भाव उमड़ उठता .
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उस बालक को पुचकारा ,
फिर मैंने उसको समझया ,
निस -दिन का क्रम बन जायेगा,
तू रोते -रोते सो जायेगा,
तेरे जीवन का वह सावन ,
अब नहीं लौट कर आयेगा,
वह कभी नहीं माँ आयेगी,
वह बाप लौट ना पायेगा.
अब कडवे -तीखे शब्द सभी ,
बस मधुर समझ कर सुनने है,
दर- दर की ठोकर को तुमको,
बस मंजिल समझ कर चठने है,
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जग में है वो सौभाग्यशाली ,
माँ -बाप का जिनको प्यार मिला,
उनके समान नहीं कोई ज्ञानी ,
माँ-बाप को जिसने प्यार दिया .
मै भी कितना अँधा हूँ जी,
माँ-बाप को ही मै छोड़ चला ,
अजी, व्यर्थ स्वाभिमान के कारण ,
मै अपनों से ही रूठ चला .
चल लौट -लौट अपने घर को,
वंहा माँ तेरी रोटी होगी,
इस जिगर के टुकड़े के खातिर,
ना - रात, ना -दिन,सोती होगी .
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शनिवार, 13 नवंबर 2010
हाँ तुम !
पंडित जी कि हुई पिटाई
पंडित जी हाँ चोटी वाले,
लम्बा कुर्ता, धोती वाले,
पंडित जी चमड़ी के गोरे,
बुद्धि में थे कागज कोरे .
पंडित जी के सर पर चुटिया,
संग अपने रखते थे लुटिया,
पंडित जी संग मेरे रहते,
गर्ल- वर्ल की बाते करते.
पंडित जी ने व्यथा बताई,
एक कन्या की कथा सुनाई,
पंडित जी ने दाव लगाया,
उस कन्या को मुक्षे दिखाया.
****************************
कन्या मालिक की बेटी थी,
पहले माले पर रहती थी ,
पंडित जी ने प्रीत जताई,
कन्या मंद- मंद मुस्काई.
कन्या सीढ़ी से जब आई,
पंडित जी ने बात बनाई ,
कन्या सच में वंडर थी,
क्यूट और अतिसुंदर थी.
कन्या कॉलेज में पढ़ती थी,
बाते इंग्लिश में करती थी,
कन्या के संग एक फ्रंडा था,
सकल से दिखता गैंडा था.
**************************
(पंडित जी प्यार में गिर चुके थे. उन्हें सहारे कि जरुरत थी .
मैंने कंहा पंडित जी आप स्मार्ट है . धोती कुर्ता और चुटिया
में खूब फबते है, आप के अंदर भारतीयता है , नातिकता है,
पर आधुनिकता नहीं है.आप को आधुनिक बनना होगा. )
पंडित जी ने चोटी बदली ,
कुर्ता और लगोंटी बदली ,
पंडित जी अब जींस- पैंट में,
चलते जैसे चले रैम्प में.
पंडित जी ने ऐनक पहनी,
अब दिल कि बाते है कहनी,
पंडित जी ने पुष्प मंगाया,
लव- लैटर मुझ से लिखवाया.
पंडित जी थे बड़े पुजारी,
जप राधा -स्वामी कृष्ण -मुरारी,
पंडित जी अब सुबह -सवेरे ,
नए प्यार में हाथ पसारे.
**************************
(अब पंडित जी ,अपनी दिल की बात उस कन्या से कहते है.)
कन्या कटी मटकती आई,
पंडित जी क्या हुई सगाई ,
पंडित जी के होस उड़ गए,
कन्या के जो कदम बढ़ गए.
पंडित जी कहने को ठानी,
कन्या तेरी मस्त जवानी,
कन्या तेरा हूँ दीवाना ,
आ मेरी बाहों में आना .
कन्या ने तब चीख लगाई ,
पंडित जी की हुई पिटाई.
लम्बा कुर्ता, धोती वाले,
पंडित जी चमड़ी के गोरे,
बुद्धि में थे कागज कोरे .
पंडित जी के सर पर चुटिया,
संग अपने रखते थे लुटिया,
पंडित जी संग मेरे रहते,
गर्ल- वर्ल की बाते करते.
पंडित जी ने व्यथा बताई,
एक कन्या की कथा सुनाई,
पंडित जी ने दाव लगाया,
उस कन्या को मुक्षे दिखाया.
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कन्या मालिक की बेटी थी,
पहले माले पर रहती थी ,
पंडित जी ने प्रीत जताई,
कन्या मंद- मंद मुस्काई.
कन्या सीढ़ी से जब आई,
पंडित जी ने बात बनाई ,
कन्या सच में वंडर थी,
क्यूट और अतिसुंदर थी.
कन्या कॉलेज में पढ़ती थी,
बाते इंग्लिश में करती थी,
कन्या के संग एक फ्रंडा था,
सकल से दिखता गैंडा था.
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(पंडित जी प्यार में गिर चुके थे. उन्हें सहारे कि जरुरत थी .
मैंने कंहा पंडित जी आप स्मार्ट है . धोती कुर्ता और चुटिया
में खूब फबते है, आप के अंदर भारतीयता है , नातिकता है,
पर आधुनिकता नहीं है.आप को आधुनिक बनना होगा. )
पंडित जी ने चोटी बदली ,
कुर्ता और लगोंटी बदली ,
पंडित जी अब जींस- पैंट में,
चलते जैसे चले रैम्प में.
पंडित जी ने ऐनक पहनी,
अब दिल कि बाते है कहनी,
पंडित जी ने पुष्प मंगाया,
लव- लैटर मुझ से लिखवाया.
पंडित जी थे बड़े पुजारी,
जप राधा -स्वामी कृष्ण -मुरारी,
पंडित जी अब सुबह -सवेरे ,
नए प्यार में हाथ पसारे.
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(अब पंडित जी ,अपनी दिल की बात उस कन्या से कहते है.)
कन्या कटी मटकती आई,
पंडित जी क्या हुई सगाई ,
पंडित जी के होस उड़ गए,
कन्या के जो कदम बढ़ गए.
पंडित जी कहने को ठानी,
कन्या तेरी मस्त जवानी,
कन्या तेरा हूँ दीवाना ,
आ मेरी बाहों में आना .
कन्या ने तब चीख लगाई ,
पंडित जी की हुई पिटाई.
गुरुवार, 3 जून 2010
मधुशाला
Add caption |
अपने मादक नैनों से पिला रही- मादक हाला.
भरी हुई मधु कि बोतल, औ भरा हुवा मधु का प्याला,
मुक्षको प्रेमी बना रही थी , मधुरम - मधुरुस -मधुशाला.
प्याले का आलिंगन कर , अधरों को चूमे मधुशाला ,
हर दिन - हर पल डोलू हर पल, लिए हुए मधु का प्याला .
तन्द्रा - निंद्रा रात्रि और दिन, सपनो में भी मधुशाला,
मै तो उसका बन बैठा था, प्रेमी- पागल- मतवाला .
अपने पुरखो की समाधी पर, बनवाई एक मधुशाला ,
नाते- रिश्ते बंधन भूला , याद रहा मधु का प्याला.
मेरे जीवन में बस था , मदिरालय- मधुरस- प्याला .
घुट - घुट कर मै रोता हूँ, फूट रही अंतरज्वाला.
बर्बादी को देख मेरी है , चिढ़ा रही मुझको हाला ,
मेरी लघुता पर हँस - हँस कर, झूम रही है मधुशाला.
तू बड़ी संगिनी है बाला , तू बड़ी रंगिनी है बाला ,
अनजान प्रेम था कर बैठा , बन गयी कंठ कि है माला .
तू लोक -लाज किसका करती , अरि बेहया-बेशर्म मधुशाला ,
छू लेती जब अधरों को ,है मर जाता पिने वाला .
जब मदिरालय खाली होगी , उस समय कंहा तू जाएगी ,
प्याले बोतल में पड़ी -पड़ी , अपनी करनी पर रोएगी .
मै मदिरालय से दूर चला ,री भस्म हो जा मधुशाला,
मानव बनने के लिए चला , ठुकराता हूँ तेरा प्याला .
तू बड़ी संगिनी है बाला , तू बड़ी रंगिनी है बाला ,
अनजान प्रेम था कर बैठा , बन गयी कंठ कि है माला .
तू लोक -लाज किसका करती , अरि बेहया-बेशर्म मधुशाला ,
छू लेती जब अधरों को ,है मर जाता पिने वाला .
जब मदिरालय खाली होगी , उस समय कंहा तू जाएगी ,
प्याले बोतल में पड़ी -पड़ी , अपनी करनी पर रोएगी .
मै मदिरालय से दूर चला ,री भस्म हो जा मधुशाला,
मानव बनने के लिए चला , ठुकराता हूँ तेरा प्याला .
माँ के नाम
जिसकी सुकोमल कोख से यह जन्म पाने के लिए ,
पीकर पायो निधि धार जिसकी यह रूप पाने के लिए ।
हे, ममतामयी -म्रदुभाषणी-मातेंशवरी तुझको नमन ॥
पीकर पायो निधि धार जिसकी यह रूप पाने के लिए ।
हे, ममतामयी -म्रदुभाषणी-मातेंशवरी तुझको नमन ॥
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