कॉलेज के पहले दिन से ,नजरो में वो आई थी,
ना जाने इन कुडिओं में ,क्यों वो ही मुझको भायी थी.
छिप- छिप कर देखा करता, इन नजरो की कोरो से ,
दिल उन्हें छिपा लिया ,धड़कन के द्वारो से.
यह दिल उनका ही आशियाना है, ऐ कविता उनसे कह देना..
इस लुका छिपी के खेल में धीरे- धीरे मेल हुआ,
अपना उसे समझ बैठा ,ना ख़त लिखा ,ना ई-मेल हुआ.
प्यार वो मुझसे करती है ,नहीं उसे दर्शाती है,
सच पूछो वो ज़िद्दी, है इसलिए मुझे सताती है ,
सपनो में आती हो तुम, ऐ कविता उनसे कह देना.
ऐ कविता उनसे कह देना....
जवाब देंहटाएंbohot hi pyari rachna... ummid karti hu is kavita ne unse keh diya hoga :)