शनिवार, 14 सितंबर 2013

चौदह सितम्बर हिंदी दिवस

चौदह सितम्बर - हिंदी दिवस 

 
"गीत , रुबाई .ग़ज़ल सुनावे ,

विविध विधा से मन सरसावे ,

हृदयहार ,माथे की बिंदी,

क्या सखि साजन ?? न सखि ‘हिन्दी’  ।। "
 
हिन्दी ना सिर्फ हमारी मातृभाषा है बल्कि यह अजाद भारत की राजभाषा भी है। विधान ने 14 सितंबर, 1949 को हिन्दी को भारत की राजभाषा घोषित किया था।  भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343 (1) में यह वर्णित है कि “संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय होगा।
 
  इ सके बाद साल 1953 में हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। 
 
 हिंदी विश्व में दूसरी सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। दुनिया में साठ करोड़ से भी ज्यादा हिंदी पढ़ते,लिखतें  और बोलतें हैं। 
 
 महात्मां गाँधी ने कहा था कि "
"मैं हिंदी के जरिए प्रांतीय भाषाओं को दबाना नहीं चाहता किंतु उनके साथ हिंदी को भी मिला देना चाहता हूं ।
भारत में स्‍वतंत्रता के बाद संसदीय लोकतंत्र लगातार मजबूत हुआ है। भारतीय लोकतंत्र विश्‍व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है जहां अनेक जातियों धर्मों और भाषाओं के बावजूद सबको बराबरी का हक मिला है। "
 
राजभाषा अधिनियिम की धारा 3 [3] के तहत यह कहा गया कि सभी सरकारी दस्तावेज और निर्णय अंग्रेजी में लिखे जाएंगे और साथ ही उन्हें हिन्दी में अनुवादित कर दिया जाएगा. जबकि होना यह चाहिए था कि सभी सरकारी आदेश और कानून हिन्दी में ही लिखे जाने चाहिए थे और जरूरत होती तो उन्हें अंग्रेजी में बदला जाता। सरकार को यह समझने की जरूरत है हिन्दी भाषा सबको आपस में जोड़ने वाली भाषा है तथा इसका प्रयोग करना हमारा संवैधानिक एवं नैतिक दायित्व भी है। 
 
 कवि गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर  ने कहा था कि "
"भारत की सब प्रांतीय बोलियाँ घर की रानी बन कर रहें---और आधुनिक भाषाओँ के हार की मध्य मणि हिंदी
भारत-भारती होकर विराजती रहे।"
 
सचमुच राष्ट्रीय अखंडता, सांस्कृतिक एकता तथा आपसी सद्भाव के लिए केवल एक ही संपर्क भाषा है वह है हिंदी।
 
            जय हिन्द। जय हिंदी।।

रविवार, 28 अप्रैल 2013

उनकी याद जब आयी

आज मैंने चाँद में तुम्हारा चेहरा देखा,
अनंत आकाश में सितारों से नाम लिक्खा था तुम्हारा,
तुम्हारे नील -निर्झर से लहराते बाल ,



औ झील सी आखें,मनो किसी चित्रकार ने,
आकाश के कैनवस पर तुम्हरा चित्र खींच दिया हो।
तुम फिर याद आयीं ,अक्सर याद आती हो मुझको,
सच्ची ,बहुत दिन हुयें तुम्हारी आवाज की बौझरों से-भीगा नहीं मै।।





 

शनिवार, 27 अप्रैल 2013

कुछ मुक्तक "हम -तुम" से

१. वो  कहती है  कि  ये  जज्बात  दिल में यूँ  पनपते  हैं ,
    सिरा  थामें  समय का , सब यंहा पर  दिल बदलते हैं,
    कशिश  जो चाहतों  में हैं ,उन्हें  बतला सकूँ  उसको ,
    कि क्या अहसास  भी उसको  कि  कितना हम  तडपते  हैं।


 








२.मेरे प्राण के प्रष्ठों पर ,रची  एक  अल्पना  तुम हो,
   किसी श्रंगार के कवि कि ,मोहक कल्पना तुम हो,
   इस धरा से आसमां तक ,सबको खबर ये है,
   मैं आशिक हूँ -तेरा लेकिन ,खाफां  मुझसे  अभी तुम हो।

दिल की हर धड़कन में तुम हो

दिल की हर धड़कन में तुम हो ,
मन के हर मंजर में तुम हो ,
सुब्हे - शामे ,प्रातः -काले ,
ख्वाबों  में ,हर पल में तुम हो।
इस तरह मुझमें  समयीं ,
तो  मेरा अपराध क्या है ,
ये  नहीं तो तुम ही बोलो ,
फिर  कहो तुम प्यार क्या है।।


तुम मेरे हर काव्य  में  हो,
महफिलों  के  राग में हो,
हार में  हो , जीत में  हो,
प्रेम  के  हर गीत में हो।

जिस तरह  मोहन की  राधा ,
उस तरह की  प्रीति  में हो ,
तुम मेरे हर गीत में हो,
दिल की हर धड़कन में तुम हो।।