शनिवार, 27 अप्रैल 2013

कुछ मुक्तक "हम -तुम" से

१. वो  कहती है  कि  ये  जज्बात  दिल में यूँ  पनपते  हैं ,
    सिरा  थामें  समय का , सब यंहा पर  दिल बदलते हैं,
    कशिश  जो चाहतों  में हैं ,उन्हें  बतला सकूँ  उसको ,
    कि क्या अहसास  भी उसको  कि  कितना हम  तडपते  हैं।


 








२.मेरे प्राण के प्रष्ठों पर ,रची  एक  अल्पना  तुम हो,
   किसी श्रंगार के कवि कि ,मोहक कल्पना तुम हो,
   इस धरा से आसमां तक ,सबको खबर ये है,
   मैं आशिक हूँ -तेरा लेकिन ,खाफां  मुझसे  अभी तुम हो।

दिल की हर धड़कन में तुम हो

दिल की हर धड़कन में तुम हो ,
मन के हर मंजर में तुम हो ,
सुब्हे - शामे ,प्रातः -काले ,
ख्वाबों  में ,हर पल में तुम हो।
इस तरह मुझमें  समयीं ,
तो  मेरा अपराध क्या है ,
ये  नहीं तो तुम ही बोलो ,
फिर  कहो तुम प्यार क्या है।।


तुम मेरे हर काव्य  में  हो,
महफिलों  के  राग में हो,
हार में  हो , जीत में  हो,
प्रेम  के  हर गीत में हो।

जिस तरह  मोहन की  राधा ,
उस तरह की  प्रीति  में हो ,
तुम मेरे हर गीत में हो,
दिल की हर धड़कन में तुम हो।।