क्षितिज
शुक्रवार, 19 नवंबर 2010
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अब तक मैंने गीत विरह के गाये थे,
अब मै राग प्रेम का छेडूंगा,
अब तक मैंने भवरो के संग गुंजार करूँगा,
अब मै अलियों -कलियों के संग खेलूँगा.
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