कुछ यू ही तो तकरार हुई ,
अपनों की फटकार लगी ,
बात बान मै सह ना सका ,
जी यू ही घर से निकल पड़ा .
मै यंहा कंही भी नहीं रुका ,
मै दूर राज्य में पंहुच गया,
इस पेट के कारण मैंने भी ,
इस पेट का कारण खोज लिया.
मैंने देखा एक बालक -वह रोता था,
वह माँ कहकर के रोता था ,
टोली में उसका पता किया ,
फिर उस बालक कि व्यथा सुना.
तन जिसका पूरा नंगा था,पेट -पीठ में भेद नहीं ,
कंकाल मात्र ही दिखता था,
वह रोता था ,चिल्लाता था,
लोगो कि जूठन खता था,
वह बेचारा क्या करता,
जब जग मालिक ही रूढ़ गया,
बाप का साया छीन लिया ,
माँ की ममता को हठप लिया,
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वही एक टोली में माँ थी ,
निज बच्चे को दुलराती थी ,
उस माँ की ममता को लखकर ,
आनंदविभोरित हो उठता ,
इस भावुक कवि के मन में भी,
ममता का भाव उमड़ उठता .
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उस बालक को पुचकारा ,
फिर मैंने उसको समझया ,
निस -दिन का क्रम बन जायेगा,
तू रोते -रोते सो जायेगा,
तेरे जीवन का वह सावन ,
अब नहीं लौट कर आयेगा,
वह कभी नहीं माँ आयेगी,
वह बाप लौट ना पायेगा.
अब कडवे -तीखे शब्द सभी ,
बस मधुर समझ कर सुनने है,
दर- दर की ठोकर को तुमको,
बस मंजिल समझ कर चठने है,
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जग में है वो सौभाग्यशाली ,
माँ -बाप का जिनको प्यार मिला,
उनके समान नहीं कोई ज्ञानी ,
माँ-बाप को जिसने प्यार दिया .
मै भी कितना अँधा हूँ जी,
माँ-बाप को ही मै छोड़ चला ,
अजी, व्यर्थ स्वाभिमान के कारण ,
मै अपनों से ही रूठ चला .
चल लौट -लौट अपने घर को,
वंहा माँ तेरी रोटी होगी,
इस जिगर के टुकड़े के खातिर,
ना - रात, ना -दिन,सोती होगी .
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अच्छा लगा, आज सबह से मुस्कुराया नहीं था।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ,
जवाब देंहटाएंआप की टिप्पड़ी पढ़कर अच्छा लगा ,
ब्लॉग के दुनिया में मै अभी नया हूँ .
again thanks