सोमवार, 12 नवंबर 2012

शुभ दीपावली



आती है हर वर्ष दिवाली , दीप अवली के संग,
जन - मन पर चढ़ता नया ,श्री राम तुम्हारा रंग,

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आ - आ कर हर वर्ष दिवाली ,यह शिक्षा दे जाती  है ,
सबल बनो  तुम  डरो नहीं जीवन का पाढ़ पढ़ाती है,

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हिन्दू - मुस्लिम -बौद्ध -सिक्ख और इसाई -जैन ,
हर दिल के दीपक  बने ,हर दिल के सुख - चैन।

                                                              
 

रविवार, 14 अक्तूबर 2012

मुझे इस बात की कोई परवाह नहीं है

 
आज जंहा ये बस्ती है ,कल से एक बड़ा उद्दयोग लगने वाला है,
लोगों को उनकी माटी से अलग किया जाने वाला है,
उनके विरोध करने पर,उनकी गृह्स्थी को फेंक दिया जायेगा ,
उनकी झोपड़ियो में आग लगा दी जाएगी ,
मुझे इस बात की कोई परवाह नहीं है ,
उस बस्ती में मेरा अपना कोई नहीं रहता  है।

उनकी गृह्स्थी में कुछ खर -पतवार हैं ,बांस की डंडिया हैं ,
दो -चार बर्तन हैं,फावड़ा है ,कुदाल है ,
पुरे परिवार में कुल मिलकर दस नंगे बच्चें हैं,
पर सोने के लिए एक ही गलीचा है ,
मुझे इस बात की कोई परवाह नहीं है ,
उनमें से मेरा कोई रिश्तेदार नहीं हैं।

इन छोटी झोपड़ियो के बाद एक बड़ी झोपडी है ,
वंहा इस बस्ती के बच्चें पढने जातें हैं,वह उनकी पाठशाला है,
कल उसे भी वंहा से हटा दिया जायेगा ,
बच्चों के सपनो को झझकोर दिया जायेगां ,
मुझे इस बात की कोई परवाह नहीं है ,
वंहा मेरे घर से कोई पढने नहीं जाता हैं।




  
 

सोमवार, 1 अक्तूबर 2012

नीँद

अब आंखे  अक्सर उसे बंद करने से इंकार कर देती है,
पलकों के दरवाज़े से बाहर ,
दहलीज पर पड़े सोफे पर बैठना पड़ता है उसे।
बहुत देर तक इंतजार करना पड़ता है,
बचपन में बहुत जल्दी से आ जाती थी,
झट से नन्ही पलकों समा जाती थी।
अब भटकती  रहती है बिस्तर पर ,
न जाने कितनी करवाते बदलती है,
तकिये को सीने से लगाये हुए।
इक्छावों का पंछी उड़ता है स्वप्नों के अनंत आकाश में,
फिर सहसा गिर पड़ता है पखे से काटकर,
लहूलुहान बिस्तर पर।
अब वो मेरा दामन  पकड़कर रोती है ,
पलकों का दरवाज़ा बंद होता है और मुझे नींद आ जाती है।