गुरुवार, 3 जून 2010

मधुशाला

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 मदिरालय  के  दरवाजे पर खड़ी    हुई  - साकी बाला,
अपने मादक   नैनों  से पिला रही- मादक हाला.
भरी हुई मधु कि बोतल, औ  भरा हुवा मधु का प्याला,
मुक्षको प्रेमी बना रही थी , मधुरम - मधुरुस -मधुशाला.

प्याले  का  आलिंगन  कर ,    अधरों को  चूमे  मधुशाला ,
हर दिन - हर पल डोलू हर पल, लिए हुए मधु का प्याला .
तन्द्रा   - निंद्रा रात्रि और दिन,  सपनो में भी मधुशाला,
मै तो उसका बन बैठा  था,  प्रेमी- पागल- मतवाला .

अपने पुरखो की समाधी पर, बनवाई एक मधुशाला  , 
नाते- रिश्ते बंधन भूला , याद रहा मधु  का प्याला.
मेरे जीवन में बस  था , मदिरालय- मधुरस- प्याला .

साकी ने है मुझे  छला  -   मै ठगा गया मधु के द्वारा , 
घुट  - घुट  कर मै रोता  हूँ,  फूट  रही  अंतरज्वाला.
बर्बादी  को   देख  मेरी है ,  चिढ़ा रही मुझको हाला ,
मेरी लघुता पर हँस हँस कर,  झूम रही है मधुशाला.


तू बड़ी संगिनी है बाला , तू बड़ी रंगिनी है  बाला ,
अनजान प्रेम था कर बैठा , बन गयी कंठ कि है माला .
तू लोक -लाज किसका करती , अरि बेहया-बेशर्म  मधुशाला ,
छू लेती  जब अधरों  को ,है मर जाता पिने वाला .


 जब मदिरालय खाली होगी , उस समय कंहा तू जाएगी ,
प्याले बोतल में पड़ी -पड़ी , अपनी करनी पर रोएगी .
मै मदिरालय से दूर चला ,री भस्म हो जा मधुशाला,
मानव बनने के लिए चला , ठुकराता हूँ तेरा प्याला .  











 




माँ के नाम

जिसकी सुकोमल कोख से यह जन्म पाने के लिए ,
पीकर पायो निधि धार जिसकी यह रूप पाने के लिए ।
हे, ममतामयी -म्रदुभाषणी-मातेंशवरी तुझको नमन ॥