शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

कविता उनसे कह देना

कॉलेज के पहले दिन से ,नजरो में वो आई थी,
ना जाने इन कुडिओं में ,क्यों वो ही मुझको भायी थी.
छिप- छिप कर देखा करता, इन नजरो  की कोरो से ,
दिल उन्हें छिपा लिया ,धड़कन  के   द्वारो    से.
यह दिल उनका ही आशियाना है, ऐ कविता उनसे कह देना..

इस लुका छिपी के खेल में धीरे- धीरे मेल हुआ,
अपना उसे समझ बैठा ,ना ख़त लिखा ,ना ई-मेल हुआ.
प्यार वो मुझसे करती है ,नहीं उसे दर्शाती है,
सच पूछो वो ज़िद्दी, है इसलिए मुझे सताती है ,
सपनो में आती हो तुम, ऐ कविता उनसे कह देना.