रविवार, 14 नवंबर 2010

जिगर का टुकड़ा

कुछ यू ही तो तकरार हुई ,
अपनों की फटकार लगी ,
बात बान मै सह ना सका ,
जी यू ही घर से निकल पड़ा .

मै यंहा कंही भी नहीं रुका ,
मै दूर राज्य में पंहुच गया,
इस पेट के कारण मैंने भी ,
इस  पेट का कारण खोज लिया.

मैंने देखा एक बालक -वह रोता था,
वह माँ कहकर के रोता  था ,
टोली में उसका पता किया ,
फिर उस बालक कि व्यथा सुना.

तन जिसका पूरा नंगा था,पेट -पीठ  में भेद नहीं ,
कंकाल मात्र ही दिखता था,
वह रोता था ,चिल्लाता था,
लोगो कि जूठन खता था,

वह बेचारा क्या करता,
जब जग मालिक ही रूढ़ गया,
बाप का साया छीन लिया ,
माँ की ममता को हठप लिया,

**************************

वही एक टोली में माँ थी ,
निज बच्चे को दुलराती थी ,

उस माँ की ममता को लखकर ,
आनंदविभोरित हो उठता ,
इस भावुक कवि के मन में भी,
ममता का भाव उमड़ उठता .

*********************

उस बालक को पुचकारा ,
फिर  मैंने  उसको समझया ,
निस -दिन का क्रम बन जायेगा,
तू रोते -रोते  सो जायेगा,

तेरे जीवन का वह सावन ,
अब नहीं लौट कर आयेगा,
वह कभी नहीं माँ आयेगी,
वह बाप लौट ना पायेगा.

अब कडवे -तीखे  शब्द सभी ,
बस मधुर समझ कर सुनने  है,
दर- दर की ठोकर को तुमको,
बस मंजिल समझ कर चठने है,

*****************************

जग में है वो सौभाग्यशाली ,
माँ -बाप का जिनको प्यार मिला,
उनके समान नहीं कोई ज्ञानी ,
माँ-बाप को जिसने प्यार दिया .

मै भी कितना अँधा हूँ जी,
माँ-बाप को  ही मै छोड़  चला ,
अजी, व्यर्थ स्वाभिमान के कारण ,
मै अपनों से ही रूठ चला .

चल लौट -लौट अपने घर को,
वंहा माँ तेरी रोटी होगी,
इस जिगर के टुकड़े के खातिर,
ना - रात,  ना -दिन,सोती होगी .

****************************

2 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा लगा, आज सबह से मुस्कुराया नहीं था।

    जवाब देंहटाएं
  2. धन्यवाद ,
    आप की टिप्पड़ी पढ़कर अच्छा लगा ,
    ब्लॉग के दुनिया में मै अभी नया हूँ .
    again thanks

    जवाब देंहटाएं