हिन्दी आकदमी के अध्याच्छ पद के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री ने अशोक चक्रधर के स्थान पर डॉ कुमार विश्वास को चुना । लोगों ने इस पर अपनी टिप्पड़ियां और राय दीं।
आज मैं दुष्यन्त कुमार की कवितायेँ पढ़ रहा था। लगा कि बेझिझक सच को कविता में कहने वाले कवियों कि गड़ना बस उंगलियों पर ही कि जा सकती है।
"मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए" जैसी पंक्तियाँ कहने वाले कि एक और दमदार कविता :
बाढ़ की संभावनाएँ सामने हैंबाढ़ की संभावनाएँ सामने हैं,
और नदियों के किनारे घर बने हैं ।
चीड़-वन में आँधियों की बात मत कर,
इन दरख्तों के बहुत नाज़ुक तने हैं ।
इस तरह टूटे हुए चेहरे नहीं हैं,
जिस तरह टूटे हुए ये आइने हैं ।
आपके क़ालीन देखेंगे किसी दिन,
इस समय तो पाँव कीचड़ में सने हैं ।
जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में,
हम नहीं हैं आदमी, हम झुनझुने हैं ।
अब तड़पती-सी ग़ज़ल कोई सुनाए,
हमसफ़र ऊँघे हुए हैं, अनमने हैं ।
- दुष्यन्त कुमार