रविवार, 14 अक्तूबर 2012

मुझे इस बात की कोई परवाह नहीं है

 
आज जंहा ये बस्ती है ,कल से एक बड़ा उद्दयोग लगने वाला है,
लोगों को उनकी माटी से अलग किया जाने वाला है,
उनके विरोध करने पर,उनकी गृह्स्थी को फेंक दिया जायेगा ,
उनकी झोपड़ियो में आग लगा दी जाएगी ,
मुझे इस बात की कोई परवाह नहीं है ,
उस बस्ती में मेरा अपना कोई नहीं रहता  है।

उनकी गृह्स्थी में कुछ खर -पतवार हैं ,बांस की डंडिया हैं ,
दो -चार बर्तन हैं,फावड़ा है ,कुदाल है ,
पुरे परिवार में कुल मिलकर दस नंगे बच्चें हैं,
पर सोने के लिए एक ही गलीचा है ,
मुझे इस बात की कोई परवाह नहीं है ,
उनमें से मेरा कोई रिश्तेदार नहीं हैं।

इन छोटी झोपड़ियो के बाद एक बड़ी झोपडी है ,
वंहा इस बस्ती के बच्चें पढने जातें हैं,वह उनकी पाठशाला है,
कल उसे भी वंहा से हटा दिया जायेगा ,
बच्चों के सपनो को झझकोर दिया जायेगां ,
मुझे इस बात की कोई परवाह नहीं है ,
वंहा मेरे घर से कोई पढने नहीं जाता हैं।




  
 

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