शनिवार, 27 अप्रैल 2013

कुछ मुक्तक "हम -तुम" से

१. वो  कहती है  कि  ये  जज्बात  दिल में यूँ  पनपते  हैं ,
    सिरा  थामें  समय का , सब यंहा पर  दिल बदलते हैं,
    कशिश  जो चाहतों  में हैं ,उन्हें  बतला सकूँ  उसको ,
    कि क्या अहसास  भी उसको  कि  कितना हम  तडपते  हैं।


 








२.मेरे प्राण के प्रष्ठों पर ,रची  एक  अल्पना  तुम हो,
   किसी श्रंगार के कवि कि ,मोहक कल्पना तुम हो,
   इस धरा से आसमां तक ,सबको खबर ये है,
   मैं आशिक हूँ -तेरा लेकिन ,खाफां  मुझसे  अभी तुम हो।

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