दिल की हर धड़कन में तुम हो ,
मन के हर मंजर में तुम हो ,
सुब्हे - शामे ,प्रातः -काले ,
ख्वाबों में ,हर पल में तुम हो।
इस तरह मुझमें समयीं ,
तो मेरा अपराध क्या है ,
ये नहीं तो तुम ही बोलो ,
फिर कहो तुम प्यार क्या है।।
तुम मेरे हर काव्य में हो,
महफिलों के राग में हो,
हार में हो , जीत में हो,
प्रेम के हर गीत में हो।
जिस तरह मोहन की राधा ,
उस तरह की प्रीति में हो ,
तुम मेरे हर गीत में हो,
दिल की हर धड़कन में तुम हो।।
मन के हर मंजर में तुम हो ,
सुब्हे - शामे ,प्रातः -काले ,
ख्वाबों में ,हर पल में तुम हो।
इस तरह मुझमें समयीं ,
तो मेरा अपराध क्या है ,
ये नहीं तो तुम ही बोलो ,
फिर कहो तुम प्यार क्या है।।
तुम मेरे हर काव्य में हो,
महफिलों के राग में हो,
हार में हो , जीत में हो,
प्रेम के हर गीत में हो।
जिस तरह मोहन की राधा ,
उस तरह की प्रीति में हो ,
तुम मेरे हर गीत में हो,
दिल की हर धड़कन में तुम हो।।
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